मध्य प्रदेश वन विभाग का संजीव कुमार सिंह एसडीओ 20 वा अवैध नौकरी से शासन प्रशासन का कमाऊपुत पर, कार्यवाही क्यों नहीं होती है.....?


 वन विभाग मध्य प्रदेश में दूसरे प्रदेशों से आकर मध्य प्रदेश राजवन सेवा आयोग को भारी रिश्वत एवं धोखे का खेल करते हुए अवैध नियुक्ति लेकर फर्जीवाड़ा की नौकरी करते हुए मौज उड़ा रहे हैं ।जबकि सभी प्रदेश में पृथक पृथक वन सेवा आयोग हैं ।

 कार्यवाही नहीं होने से वन विभाग के सारे उच्च अधिकारियों द्वारा यह भ्रष्टाचार जानबूझकर पोषित हो रहा है और कानून फर्जी वाड़े की नौकरी पर वर्षों से "झक मार रहा है"!

हैरानी और परेशानी तक मध्य प्रदेश शासन को नहीं हो रही है और वन विभाग को अब तक अरबो रुपए की हानि हो चुकी है। यह हानी का सैलाब में क्या शासन- प्रशासन भी लाभान्वित हो रहे हैं? यदि लाभान्वित नहीं हो रहे हैं ।तब वर्षों से लगभग 50 फर्जी एसडीओ को पेंशन एवं नौकरी का अवैध लाभ क्यों दिया जा रहा है? क्या यह लोकहीत (पब्लिक मनी) का सत्यानाश नहीं तो और क्या है....?

उक्त अनावेदक का गृह जिला महोबा है और यह उत्तर प्रदेश का मूल निवासी है। इसलिए इसे उत्तर प्रदेश राज्य वन सेवा आयोग से नियुक्ति लेना था दूसरे प्रदेश अर्थात मध्य प्रदेश राजवन सेवा आयोग को भारी रिश्वत देकर एवं धोखे की आड़ लेकर असंवैधानिक नौकरी कर रहे हैं और इस अवैध नौकरी के प्रशासनिक अधिकारी एवं शासन स्वयं रक्षक बने हुए हैं । इससे जनता की भारी हानि तथा शासन की हानि की राशि भ्रष्टाचारियों के पास इकट्ठी हो रही है।

 इस प्रकार जनता अन्याय से दुखी होकर ऊपर वाले को पुकार रही है और देश तथा दुनिया में समाधान सहित न्याय का डंका बजेगा इसलिए पाप के घड़ो का धीरे-धीरे फूठना चालू हो चुका है। आपस में जनता कह उठी है की इबादत, भक्ति बढ़ाओ। प्रार्थना लगाओ ।इससे परिवर्तन चक्र की गति उग्र हो रही है। 


जनता सब जानती है कौन-कौन कैसे-कैसे भ्रष्टाचार की काली कमाई इकट्ठा कर रहे हैं ।कल की बात और थी आज की और है। अत्यधिक दौलत संग्रह कर्ताओं के घड़े भरते भरते फूटना चालू हो चुके हैं । 

क्योंकि धरातल पर कार्यवाही करने वाले स्वयं "उल्टा चोर कोतवाल को डांट " जैसे - (भ्रष्टाचारी भ्रष्टाचार करें और शिकायतकर्ताओं पर सवाल खड़े करें)लगाने का कार्य कर रहे हैं और अपने गिरेबान पर नहीं देख रहे हैं लोग सौ- सौ चूहा बिल्ली की तरह खा रहे हैं और अपने हाथ से स्वयं भ्रष्टाचारी अपनी पीठ थपथपा रहे हैं।

 जैसे सौ- सौ चूहा खाने के बाद बिल्ली हज को चली यह कहावत भारत देश की मशहूर कहावत है और "भ्रष्टाचारियों पर सटीक" रूप से लागू होती है। 


जब जमीनी कार्यवाही को रोक कर अधिकारी अपना अपना घर भरने लगे हैं। तब घड़े भी भरते हुए फूटने लगे हैं। कुदरती तौर से जनता अर्थात अवाम को मूर्ख बनाकर ईनकी ही कमाई के रूपयो पर मौज करने वालों को पहले अनजान जनता खूब इज्जत देती थी ।

अब गनीमत है की हुक्म रानों की इज्जत नहीं करती है। और आसमानों के ऊपर वालों से अपनी फरियाद तथा प्रार्थना उग्रता से करने लग गई है। इससे आल विश्व में पापियों के घड़े फुटते हुए देखे जा सकते हैं। 


उक्त अनावेदक की कार्यवाही के नौटंकी बाजों के पत्र दिनांक 8/7 2025, दिनांक 17.5.2025 एवं कार्यवाही पत्र दिनांक 18 7 20 25 में आवेदक को वन विभाग का वन मंडल अधिकारी अपने समक्ष प्रमाण सहित बयान लिपिबद्ध करने का दबाव बना रहे हैंl यह अधिकारी भी महा भ्रष्टाचारी हैं। ये नायीक कार्यवाही अपने अधिकारियों को प्रेषित करना छोड़कर, खुद न्यायाधीश बनाकर ,आवेदक को पेशी दे रहे हैं। शर्म करो!

 जब कार्यपालिका न्यायाधीश बनकर पेशी देगी तब न्यायपालिका के अधिकार क्या होगा.....?


आवेदक न वादी है ,ना प्रतिवादी है और वन मंडल अधिकारी न्यायाधीश बनकर आवेदक को पेशी देने का कोई अधिकार नहीं रखते हैं । इसमें करोड़ो अर्बो रूपयों की लूट पर स्वयं वन मंडल अधिकारी भी लाभ लेना चाह रहे हैं।

 ईति सिद्धम इस प्रकार से प्रशासन स्वयं भ्रष्टाचार की जांच में लाभ का लालच लिए बैठे हैं। परिवर्तन चक्र में आसमानी कार्रवाइयों से गुनाहों के घड़े भरते जा रहे हैं और पाप के घड़े फूटते जा रहे हैं। चलो ऐसे माहौल में जनता को आंशिक रूप से ईश्वर की कार्यवाही की काफी राहत दी गई है।

 कृपया अपने आसपास देखें। भ्रष्टाचारी, भ्रष्टाचारी की दौलत डॉक्टरो को देकर मरने लगे हैं। इतना इशारा पर्याप्त है**सत्यमेव जयते**

**सुशील चौरसिया जी की रिपोर्ट**

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