(वन विभाग के तालाब में) सिंघाड़े की खेती! भ्रष्टाचार शेती !!

मध्य प्रदेश राज्य वन विकास निगम का 25- 30 वर्षों से तालाब में मछली पालन एवं मुख्य रूप से सिंघाड़े की खेती सरेआम हो रही है। इसमें वन विभाग के रेंजर, एस डीओ, एवं स्वयं उप संभागीय प्रबंधक सहित भोपाल के आला उच्च अधिकारी दोषी हैं।

 लगातार प्रत्येक वर्ष लाखों- लाखों रुपए का लाभ सुशील साडिंल ग्राम आष्टा जिला सिवनी मध्य प्रदेश को दिया जा रहा है। वन विभाग ऐसी हरकत करते ही जा रहा है और वन प्राणी को एवं शासन को हानि हो रही है। 


यदि वन विभाग में सिंघाड़ा लगाया जाना उचित है। तब और भी तालाबों में यह लाभ क्यों नहीं हो रहा है? सिद्ध है कि वन विभाग के तालाब में मछली पालन या सिंघाड़ा की खेती वर्जित है अर्थात वन संहिता के नियमों के विरुद्ध वर्षों से वन कर्मियों अधिकारियों ने ग्राम अंतरा के बाहरी प्रोजेक्ट जिला सिवनी मध्य प्रदेश से भोपाल के सभी उच्च अधिकारी लाखों लाखों रुपए की हरामखोरी कर रहे हैं।

 इसमें गंभीर कार्यवाही के तहत जांच करने वाले भी अपना लाभान्वित होने का उल्लू सीधा करने लग जाते हैं। 
ऐसे जिस रेत से तेल नहीं निकलता अब वहां से यह नोट निकाल रहे हैं ,क्योंकि रेत खनन वन क्षेत्र में पहले ही बहुत हुआ है,और आज भी कुछ एक स्थान में हो रहा है किंतु वन विभागों के इस एक तालाब में लाखों- लाखों रुपए 20 या 25 लाख तक की अवैध कमाई का धंधा षड्यंत्र के तहत वर्षों से जारी है और शिकायतें भी वर्षों से जारी हैं।

 शिकायतकर्ताओं की शिकायत को रोक कर जांच अधिकारी अपनी कलम फंसा कर शिकायत को बारंबार नस्तीबद करते आ रहे हैं। इसमें उच्च शीर्ष स्तर की कार्यवाही से बात बन सकती है, परंतु इसमें लगभग 8 साल का समय लगता है, इसलिए कोई भी शिकायतकर्ता वर्षों का टेंशन क्यों ले शिकायत करता अपने स्तर में भोपाल या कभी कभार दिल्ली तक शिकायत दे देते हैं और हरामखोर वन प्रशासन अधिकारी खूब भ्रष्टाचार कर रहे हैं।

 जैसे यह सभी भ्रष्टाचार के लिए ही जन्मे हो, अर्थात "प्रशासन भी भ्रष्टाचार शेती" होकर रह गया है । 
वन विभाग में लगभग सभी जगह वन सुरक्षा समिति 1 ग्राम सुरक्षा समिति इस प्रकार से बना करके रख ली गई है यह भ्रष्टाचार के संरक्षण की समिति है, इन समितियो पर लाखों करोड़ों रुपए आकर के डालते हैं कहीं के भी जैसे वन दर्शन के पैसे डालते हैं इसमें सारे रिजर्व फॉरेस्ट में यही धंधा चल रहा है और यहां पर इन्हें क्या काम करें कि यह सीधा-सीधा भ्रष्टाचार है तो इस सीधे-सीधे भ्रष्टाचार को उन्होंने वन समिति के हवाले कर दिए और वन समिति उसको अपने मन से पैसे बड़ा-बड़ा कर ठेका दे रही है और वह ठेके की राशि जो वन समिति में आ रही फिर वन समिति से कुछ भी बहाना बनाकर के राशि निकाल के यह सब खा पी रहे हैं और यहां से लेकर भोपाल तक की रिश्वत दे रहे हैं। 


यहां विचारणीय तथ्य यह है कि प्रत्येक जिले में लगभग आधा दर्जन या इससे भी ज्यादा फर्जी नौकरी करने वालों ने प्रशासन को अपने षड्यंत्र के मोह फास में जकड़े हुए है । 


सारे प्रदेश का यही हाल है। यह उस समय पता चलता है, वन विभाग के कोरचे बाबू को भ्रष्टाचार के लिए, शिकायत के स्थानांतरण तक को षड्यंत्र कर कोरचे बाबू दक्षिण सामान वन मंडल वर्षों से भ्रष्टाचार का राज चला रहे हैं । मीडिया में फेक न्यूज़ चलती हो या उल्टे समाचार चलते हो यहां भ्रष्टाचारियों ने कोरचे बाबू को षड्यंत्र से रोक कर माननीय न्यायालय हाई कोर्ट से स्टे की खबर फैला दी गई हैं और बाबूजी भ्रष्टाचार शेती बने हुए हैं । 

ऐसी दुर्गति में कॉरपोरेशन भी जंगल के तालाब में सिंघाड़े की खेती अर्थात भ्रष्टाचार शेती है। अब परिवर्तन चक्र ही सत्यमेव जयते को स्थापित करेगा। जनता का अहम विश्वास यही है। 



(सुशील चौरसिया जी की रिपोर्ट)
 

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