क्या भू माफिये राजस्व विभाग की देन है?

जी हां, क्योंकि अक्सर रक्षक ही भक्षक पाए जाते हैं। यहां घास भूमि संभालने की जिम्मेदारी राजस्व विभाग को दी गई है, और उन्होंने आबादी और कुछ घास भूमि भी भूमि माफिया को दे दिये थे। जिसे राजनीति वालों ने सरकारों पर दबाव बनाकर आबादी भूमि की खरीद दारी और बिक्री को कानून वैध कर दिया गया है। इसमें अधिकार की बिक्री बताया जा रहा है, परंतु यदि यह जमीन सरकार की है और सरकार को बांध (जलाशय) बनाने हेतु जरूरत है तब भूमि स्वामी जैसा लाभ मिलता है, जिसका उदाहरण ग्राम पंचायत साल्हे कला का काचना मंडी जलाशय है। जिसमें कई एकड़ जमीन का मुआवजा भूमि स्वामी जैसा लाभ मिला है। इसमें भले ही जनता अपने आप ठगी -सी महसूस करें, लेकिन यही सत्य है। राजस्व विभाग को भोली जनता नहीं पटा पाई और चालबाज छुट भैय्ये राजनीति का लाभ लेने में सफल रहे हैं। उक्त स्थिति चापलूसी को बढ़ावा देने वाली रही है। इसी प्रकार राजस्व विभाग के ईमानदार पटवारी तहसीलदार आदि अनेकों को पछतावा हाथ लगा है, किंतु जो सच्चाई में रहे हैं उन्हें आर्थिक लाभ ठीक से नहीं मिला है, परंतु न्याय प्रिय सबके मलिक की दृष्टि में दृष्टि में ऐसे लोग मूल्यवान एवं सराहनीय माने जाते हैं, जो भाग्य विधाता के न्याय से हार कर भी "हरामखोरी" को गले नहीं लगते हैं। उन पर, सब बापो के बाप जी से कृपा का न्यारा लाभ मिलता है। शायद इसीलिए कहा जाता है कि हमेशा सत्य की ही जीत होती है अर्थात सत्यमेव जयते! ऊपर स्पष्ट किया गया है कि अक्सर रक्षक ही भक्षक होता है। यह वन विभाग में भी चल रहा है और विभाग के उच्च अधिकारी वन विभाग को लूटने वाले सहयोगी हैं, जो लोग पहले कुछ समाचार पढ़े होंगे उन्हें ठीक तरह से ज्ञात हो चुका है। आबादी जैसा घास भूमि को नहीं बनाया गया है, क्योंकि यह पूरी तरह सरकार की है। इसमें एड़ी -चोटी का जोर अभी तक निरर्थक ही निकला है और अब ऐसी भूमि में जनता बुरी सजा पा रही है, क्योंकि पेट्रोल पंप में मात्र 15 साल का भूमि रिकॉर्ड मांगा जाता है ,और भू माफिया ने 30, 40 साल से घास भूमि को भूमि स्वामी बनकर बैठे हैं। इससे बरघाट नगर एवं जिला सिवनी नगर में रजिस्ट्री तो भूमि स्वामी की हो रही है। और लोग घास भूमि को खरीद कर बेच रहे हैं। इस प्रकार यह पता ही नहीं हो पा रहा है की खरीदने वाला और बेचने वाला घास भूमि को भूमि स्वामी कर खरीदी बिक्री कर रहे हैं। कृपया इसमें दोनों नगरों के तहसीलदारों को लगाई गई आरटीआई पर गौर करें। तहसील कार्यालय भी संशोधन पंजी की जानकारी छुपा रहा है, इसे कहते हैं चोर को चोर बचाया भाई। चोर चोर मौसेरे भाई। तो भ्रष्टाचारी भ्रष्टाचारी कहां जाई । इस प्रकार चोर -चोर और भ्रष्टाचारी-भ्रष्टाचारी मौज में है, और रजिस्टार के ऑफिस में जमीन के खरीददार बुरी तरह लुट रहे हैं, क्योंकि जब संशोधन पंजी नहीं है भूमि का रिकॉर्ड नहीं है, तो रजिस्ट्री में रजिस्टार रजिस्ट्री शुल्क का लगभग आधा रिश्वत में ले लेता है और वहां पर बहुत सारे लोगों की भीड़ होती है और उसे सामूहिक रूप से ब्लैकमेल किया जाता है और वह लगभग रजिस्ट्री शुल्क का आधा हिस्सा कमीशन के तौर पर दे देता है रजिस्टार को और रजिस्टार धीरे से कहता है, कमिशन भोपाल तक भेजता हूं। इस प्रकार रजिस्टार ऑफिस में भारी भ्रष्टाचार और जनता की व्यापक लूट खसूट हो रही है। विगत कई वर्षों में रिटायर्ड रजिस्टार एवं रजिस्ट्री ऑफिसर की आय से अधिक संपत्ति की जांच की जाए तो अनुमानित रूप से अरबो रुपए की झड़ती संभावित है। आरटीआई के बाद प्रथम अपील वाले भी बिना संशोधन पंजी के पसीना छोड़ते हुए दोषी एवं जिम्मेदार हुए हैं। कृपया यह दूसरी किस्त में देखें। यह एक प्रकार से शब्द भेदी बाण है जो भू माफिये राजस्व अधिकारियों एवं भ्रष्टाचारियों का भेदन करने से नहीं चूकते यह सीधे भ्रष्टो के सीने में चोट करेगा। हो सकता है शायद ये लोग कुछ सुधार कर लें। बने रहे आगामी समाचार डीडी इंडिया न्यूज़ के साथ। (जिला ब्यूरो चीफ सुशील चौरसिया जी की रिपोर्ट)

Post a Comment

Previous Post Next Post

Contact Form